राम के पूर्वज राजा शिव
एक बार राजा शिव यज्ञ करवा रहे थे उस यज्ञ में बहुत से ऋषि मुनि और ब्राह्मण आए थे उस यज्ञ में राजा की परीक्षा लेने इंद्र देव ( बाज ) के रूप में तथा आग देवता (कबूतर ) का रूप में उस यज्ञ में आते है
आग देवता रूपी (कबूतर ) भागते हुए राजा के गोद में आ छुप जाते है और इन्द्र रूपी बाज भाग के राजा के पास आ के कहता है
राजा आप धर्म के बहुत बड़े ज्ञाता है महाराज मेरा भोजन कबूतर जिसे आपने अपने गोदी छिपा रखा है राजा में बहुत दिन से भूखा हूँ महाराज मेरी आपसे से निवेदन है की आप इस कबूतर को छोड़ दो ताकि में इस कबूतर को खा सकू अगर में भूखा मर गया तो राजा आपको पांच लोगो का श्राप लगेगा में ,मेरी माता , मेरे पिता , मेरी पत्नी और मेरे पुत्र का आप एक तरफ एक जीव को बचा रहे हो और दूसरी तरफ पांच जीवो की हत्या कर रहे हो बाज रूपी इन्द्र ने कहा राजा आप मेरा आहार मुझे दे दो नहीं तो आप पुण्य करते हुए पाप के भागीदार हो जाओगे !
राजा कहते है हेहे बाज मेरे सरन में आये हुए की रक्षा करना मेरा धर्म है में इस कबूतर को तुम्हे नहीं दे सकता चाहे मेरा तन मन धन धान पत्नी या पुत्र को क्यों न छोड़ना पड़े ! ये कबूतर मुझे बहुत प्रिय है ! इसके बदले तुम मुझसे कुछ भी ले लो मेरा धन धाम सब कुछ दे दूंगा ! इस पर बाज कहता है मेरा तो भोजन कबूतर है में ये धन लेकर क्या करूँगा !
अगर आप मुझे अपना शरीर का मांस दे सकते हो तो में समझूंगा की आप दयावान है ! तब राजा शिव ने तराजू मंगवाया और एक पलड़े पर कबूतर और दूसरे पलड़े पर अपने शरीर का मांस काट-2 के रखने लगते है हर बार तराजू उठाने पर कबूतर का वजन राजा के मांस से जाता रहता है ऐसा कई बार करते रहने पर जब कबूतर के बराबर मांस नहीं हुआ तब राजा शिव स्यवं एक पलड़े पर बैठ जाते है
ये सब देख कर देवता सारे खुश हो जाते है ! और आकाश से फूलो की वर्षा करने लगते है ! फिर कबूतर और बाज अपने असली रूप में आ जाते है ! राजा को धन्यवाद करते है ! और कहते है आज तक ऐसा प्रण किसी ने नहीं किया इसलिए तुम्हारा प्रण पुरे संसार में प्रसित्द्व होगा तुम्हारा सम्मान दया भाव के नाम से किया जायेगा राजा शिव को सभी देवताओ ने आशीर्वाद दिया की तुम्हारा बुढ़ापा अच्छे से बीत जाएगा उसके बाद आपको विष्णु जी के लोक में सरन मिलेगी
इस तरह जो राजा शिव की कथा कहता और सुनता है ! वह धन्य धाम और बुद्धि से परिपूर्ण होगा !