अयोध्या नगरी में मोरतध्वज नाम के राजा रहते थे ! जो धर्म ज्ञाता ,निति में निपूर्ण और राम भक्ति में लीन रहने वाले राजा थे ! राजा की पत्नी का नाम पिंगला था जो अति पतिव्रता थी ! मोरतध्वज राजा के साम्राज्य में कोई भी व्यक्ति दुखी नहीं रहता था ! राजा कोई भी अधर्म का काम नहीं करते थे !
राजा के सम्राज्य में कोई भी व्यक्ति अधर्म का काम करने की भी नहीं सोचता था ! क्योकि राजा अपनी प्रजा को हर तरह से खुश रखते थे चाहे वह जवान हो , या बच्चा हो , या वृद्धा सभी खुश रहते थे !
औरमोरतध्वज की तरह उनकी प्रजा भी राम के नाम की भक्ति करते थी ! राजा संत जन का बहुत सम्मान करते थे ! अगर उनके नगर में कोई व्यक्ति संत का रूप लेकर राजा के नगर आ जाता था ! तो राजा संत का बहुत आदर सस्कार करते और उनके चरणों को धूल कर उस पानी को चन्नामित्र के रूप में पीते है और अपने परिवार को भी देते है ! राजा संत जन को भगवान का दर्जा देते थे !
भगवान का दर्जा देते थे जिस दिन मोरतध्वज राजा के महल में कोई संत नहीं आता था उस दिन राजा भोजन तक नहीं करते थे ! एक दिन सात चोरो ने विचार बनाया की राजा संत को बहुत मानता है !
इस तरह चोर संत का रूप धारण कर के राजा के महल पहुंच जाते है ! और अपनी सेवा राजा से करवाते है ! और खा पीकर आनंद करते है एक दिन राजा वन में शिकार खेलने जाते है ! घर में संतो की देख रेख का भार रानी को सोंप देते है !राजा हिरन का शिकार करते -२ बहुत दूर निकल जाते है ! इस तरह रात दिन निकल जाता राजा अपने महल नहीं पहुंच पाते है ! वंहा चोर महल को खाली देख कर महल का सारा सामान हीरा, जवारात , पन्ना आदि ! लूट लिया और रानी के टुकड़े -२ कर दिए !
चोरो को चोरी करते -२ सुबह हो गई जब राजा जंगल से वापिस महल की और आते है तो मोरतध्वज राजा रास्ते सातों संतो (चोर ) को जाते हुए देख कर चोरो के पेरो में गिर जाते है कहते है चोरो से महाराज मुझे आप क्षमा कर दो रानी ने आपकी आज्ञा नहीं मानी इसलिए आप महल लौट चले कृपया आप रानी को क्षमा कर दे इस तरह सातों चोर अस्मजस में पड़ गए और कहने लगे राजा हम संत नहीं चोर है !
हमें जीवन दान दे दो हमने आपको बहुत दुःख दिया है मोरतध्वज कहने लगे महाराज ऐसा मत बोलो आप मेरे नजर में संत है ! ऐसी बात आप भूल कर भी मत करना किसी से की आप चोर है ! नहीं तो कोई भी इंसान को संत – महात्मा की इज्जत नहीं करेगा ! मोरतध्वज जब महल पहुंचते है तो देखते है !
रानी के शरीर के खंड -२ फैले हुए है मोरतध्वज राजा के मन में जरा सा भी विचार नहीं आता और राजा पुनः सातों चोरो को सिंघासन पर बैठा दिया उनका आदर -सस्कार किया उन चोरो के पेरो को धो कर उसका चन्नामित्र मन के रानी के सव के पास आ के रानी के शरीर को मिला के राम भगवान ध्यान कर के उस चनमित्र को रानी पर चिरक देते है !
इस रानी उठ के बैठ जाती है | मोरतध्वज कहते है रानी तुम्हे इतनी नींद कहा से आ गई की तुम सोती रही और संत नाराज हो कर जा रहे थे ! इस तरह रानी मोरतध्वज राजा से और संतो से क्षमा मांगती है ! और मोरतध्वज संतो यानि सातो चोरो को २-३ पीढ़ी तक का धन दे देते है ! और कहते है संतो से की अब से आप चोरी नहीं करेंगे और अपना मन भगवान की भक्ति में लगाओगे राजा मोरतध्वज की ऐसी भक्ति देख कर भगवान ने राजा को अपना सुदरसन चक्र दे देते है और कहते है मोरतध्वज ये चक्र तुम्हारी और तुम्हारे राज्य की रक्षा करेगा !