राहत इंदौरी की शायरी

ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई मांगे
जो हो परदेस में वो किससे रज़ाई मांगे

उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है

दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए

नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है

घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है

शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे

हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते

आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो

बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए

मेरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे
मेरे भाई मेरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले

हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं

तेरी महफ़िल से जो निकला तो ये मंज़र देखा
मुझे लोगों ने बुलाया मुझे छू कर देखा

सूरज सितारे चाँद मेरे साथ में रहे
जब तक तुम्हारे हाथ मेरा हाथ में रहे

अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते जाते

मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे

ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो

एक मुलाक़ात का जादू उतरता ही नहीं
तेरी ख़ुशबू मेरी चादर से नहीं जाती है

रात की धड़कन जब तक जारी रहती है
सोते नहीं हम ज़िम्मेदारी रहती है

सोए रहते हैं ओढ़ कर ख़ुद को
अब ज़रूरत नहीं रज़ाई की

सितारो आओ मेरी राह में बिखर जाओ
ये मेरा हुक्म है हालाँकि कुछ नहीं हूँ मैं

अब इतनी सारी शबों का हिसाब कौन रखे
बड़े सवाब कमाए गए जवानी में

तुझ से मिलने की तमन्ना भी बहुत है लेकिन
आने जाने में किराया भी बहुत लगता है

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